सोमनाथ ज्योतिर्लिंग: भगवान शिव का शाश ्वत तीर्थ

सोमनाथ मंदिर, जो गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल के पास प्रबास पाटन नगर में स्थित है, हिंदू धार्मिक परंपरा में अत्यंत श्रद्धा का केंद्र है। यह भगवान शिव को समर्पित बारह ज्योतिर्लिंगों में पहला माना जाता है। सोमनाथ केवल एक दिव्य स्थल नहीं, बल्कि यह श्रद्धा, इतिहास और आस्था की सदियों पुरानी मिसाल है। यह पवित्र तीर्थ स्थल अपनी प्राचीन विरासत, पौराणिक महत्व और विभिन्न युगों में बार-बार पुनर्निर्माण की गौरवगाथा के लिए प्रसिद्ध है।
ऐतिहासिक और पौराणिक विरासत
मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना चंद्र देव (चंद्रमा देवता) ने अपने अहंकार के प्रायश्चित स्वरूप की थी। उन्होंने इसे सोने से बनवाया था ताकि भगवान शिव से क्षमा प्राप्त कर सकें, जिन्हें यहाँ "सोमनाथ" या "चंद्र के स्वामी" के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर स्कंद पुराण और शिव पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में वर्णित है।
इतिहास में कई बार इस मंदिर को नष्ट किया गया और फिर से बनाया गया। 1026 ईस्वी में महमूद गजनवी ने इस मंदिर पर हमला किया और लगभग 20 मिलियन दिनार मूल्य की संपत्ति लूट ली। बाद में 12वीं सदी में कुमारपाल ने इसे पत्थर से पुनः बनवाया और रत्नों से सजाया। 1299 में अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने इसे फिर से नष्ट किया। इसके बाद महिपाल प्रथम और खेंगर जैसे शासकों ने 14वीं सदी में इसे फिर से पुनर्निर्मित किया। 1395 में ज़फर खान ने इसे दोबारा नष्ट किया। स्वतंत्रता के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में इसका अंतिम प्रमुख पुनर्निर्माण 1951 में पूरा हुआ।
आध्यात्मिक महत्व: त्रिवेणी संगम
सोमनाथ का धार्मिक महत्व इसकी स्थिति से और भी बढ़ जाता है, क्योंकि यह हिरण, कपिला और सरस्वती नदियों के त्रिवेणी संगम पर स्थित है। यह वही पवित्र स्थान माना जाता है जहाँ से भगवान श्रीकृष्ण ने अपना अंतिम earthly यात्रा प्रारंभ किया था। इस संगम की आध्यात्मिक ऊर्जा दुनियाभर के साधकों को आकर्षित करती है।
सोमनाथ मंदिर के आस-पास दर्शनीय स्थल
भालका तीर्थ: जहाँ माना जाता है कि श्रीकृष्ण को गलती से तीर लगा था, जो उनके पृथ्वी से प्रस्थान का संकेत था।
त्रिवेणी संगम घाट: जहाँ श्रद्धालु पिंडदान और अन्य पूर्वजों के लिए क्रियाएं करते हैं।
देहोत्सर्ग तीर्थ: हिरण नदी के किनारे स्थित वह स्थान जहाँ श्रीकृष्ण ने शरीर त्यागा।
पंच पांडव गुफा: माना जाता है कि वनवास के दौरान पांडव यहाँ रुके थे।
सूरज मंदिर: सूर्य देव को समर्पित एक प्राचीन मंदिर, जिसकी नक्काशी बेहद आकर्षक है।
लक्ष्मी नारायण मंदिर: इसके सुंदर स्तंभों पर भगवद गीता के दृश्य उकेरे गए हैं।
प्रबास पाटन संग्रहालय: इसमें मंदिर से जुड़ी ऐतिहासिक मूर्तियाँ और अवशेष संजोए गए हैं।
कामनाथ महादेव मंदिर: यह मंदिर रोगों से मुक्ति और विशेषतः कोढ़ से इलाज के लिए प्रसिद्ध है।
जूनागढ़ गेट: एक ऐतिहासिक द्वार जो कई आक्रमणों का साक्षी रहा है।
सोमनाथ बीच: मंदिर के पास एक शांत समुद्री तट, जो ध्यान और शांति के लिए उपयुक्त है (तैराकी के लिए अनुशंसित नहीं है)।
सोमनाथ मंदिर में अनुष्ठान और उत्सव
सोमनाथ की धार्मिकता यहाँ की दैनिक पूजा और उत्सवों में समाई हुई है।
दैनिक अनुष्ठान:
मंगला आरती: सूर्योदय से पहले की जाती है, जिसमें घंटियों और भजनों की ध्वनि गूंजती है।
शिव अभिषेक: शिवलिंग का दूध, शहद और जल से स्नान कराया जाता है।
नैवेद्य और आरती: दिनभर अनेक बार पूजन और आरती होती है, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालु भाग लेते हैं।
मुख्य पर्व
महाशिवरात्रि: सबसे भव्य पर्व, जिसमें रातभर जागरण, व्रत और विशेष अभिषेक होते हैं।
दीवाली: मंदिर दीपों से जगमगाता है और रंगोली से सजाया जाता है।
नवरात्रि: देवी दुर्गा को समर्पित यह पर्व भी यहाँ उल्लास से मनाया जाता है।
मासिक शिवरात्रि: प्रत्येक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाई जाती है।
सोमनाथ प्रभात फेरी: पुजारियों और श्रद्धालुओं की एक सुबह की शोभायात्रा होती है।
पूर्णिमा और एकादशी: इन तिथियों पर विशेष पूजन और आरती होती है।
सोमनाथ मंदिर कैसे पहुँचें
सड़क मार्ग से:
अहमदाबाद से: 408.5 किमी (7–8 घंटे, NH 47 द्वारा)
राजकोट से: 194.9 किमी (3–4 घंटे)
द्वारका से: 237.2 किमी (4–5 घंटे)
पोरबंदर से: 130.7 किमी (2–3 घंटे)
प्राइवेट टैक्सी और कार रेंटल सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
हवाई मार्ग से:
दीव एयरपोर्ट: 85 किमी दूर (1–2 घंटे)
राजकोट एयरपोर्ट: 200 किमी (4–5 घंटे)
अहमदाबाद एयरपोर्ट: 390 किमी (6–7 घंटे)
इन सभी एयरपोर्ट्स से टैक्सी आसानी से मिल जाती हैं।
रेल मार्ग से:
सोमनाथ रेलवे स्टेशन: मंदिर से केवल 0.5 किमी दूर।
वेरावल रेलवे स्टेशन: 7 किमी दूर, जो अहमदाबाद, राजकोट और द्वारका से जुड़ा है।
सोमनाथ एक्सप्रेस: अहमदाबाद से चलने वाली एक सुविधाजनक ट्रेन।