नैना देवी मंदिर, नैनीताल: शांत नैनी झी ल के किनारे स्थित एक पवित्र शक्तिपीठ
Naina Devi Temple Nainital: A Sacred Shakti Peeth by the Serene Naini Lake

परिचय
उत्तराखंड के लोकप्रिय हिल स्टेशन नैनीताल की सुंदर नैनी झील के उत्तरी किनारे स्थित नैना देवी मंदिर एक अत्यंत श्रद्धेय शक्तिपीठ है। यह मंदिर मां नैना देवी को समर्पित है, जो मां दुर्गा के एक दिव्य स्वरूप मानी जाती हैं। यहाँ हर वर्ष हजारों श्रद्धालु और साधक आशीर्वाद लेने आते हैं।
पौराणिक कथाओं, आध्यात्मिक ऊर्जा और प्राकृतिक सौंदर्य से समृद्ध यह मंदिर, उन पवित्र स्थलों में से एक है जहाँ आस्था और प्रकृति का अनूठा संगम देखने को मिलता है। ऐसी मान्यता है कि इसी स्थान पर मां सती की आंखें (नयन) गिरी थीं, जिससे यह मंदिर एक महत्वपूर्ण शक्तिपीठ बन गया।
जैसे ही कोई श्रद्धालु इस पावन स्थल में प्रवेश करता है, झील की शांति, मंदिर की घंटियों की ध्वनि और अगरबत्तियों की सुगंध एक गहन आध्यात्मिक वातावरण का निर्माण करती है। यह मंदिर न केवल पूजा का स्थान है, बल्कि आशा, चित्त की शांति, और माँ की कृपा का केंद्र भी है।
मंदिर का स्थान
नैना देवी मंदिर, नैनीताल के मल्लीताल क्षेत्र में, प्रसिद्ध नैनी झील के उत्तरी किनारे पर स्थित है। यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 2000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और चारों ओर से पर्वतों और झील के सुंदर दृश्यों से घिरा हुआ है।
जिला: नैनीताल
राज्य: उत्तराखंड
ऊँचाई: लगभग 2000 मीटर (6600 फीट)
निर्देशांक: 29.3872° N, 79.4563° E
इस शांत स्थल का प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिकता, इसे एक विशेष धार्मिक एवं पर्यटक आकर्षण बनाते हैं।
ऐतिहासिक और धार्मिक पृष्ठभूमि
नैना देवी मंदिर की उत्पत्ति की कथा प्राचीन हिंदू सती और भगवान शिव की कथा से जुड़ी हुई है, जो शक्तिपीठ परंपरा का आधार है।
कथाओं के अनुसार, मां सती, जो दक्ष प्रजापति की पुत्री और भगवान शिव की पत्नी थीं, ने अपने पिता द्वारा भगवान शिव के अपमान के विरोध में यज्ञ में स्वयं को अग्नि में समर्पित कर दिया। शोकाकुल शिव, मां सती के पार्थिव शरीर को लेकर ब्रह्मांड में तांडव करने लगे।
भगवान विष्णु ने ब्रह्मांड को विनाश से बचाने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंडित कर दिया। इस प्रक्रिया में मां सती की आंखें (नयन) इस स्थान पर गिरीं, जिससे यह क्षेत्र शक्तिपीठ बन गया।
इस मंदिर का मूल स्वरूप ब्रिटिश काल से पहले से ही अस्तित्व में था। किंतु 1880 के भूस्खलन में मंदिर को भारी क्षति हुई। इसके बाद स्थानीय श्रद्धालुओं ने मिलकर इसे पुनः निर्माण करवाया।
आज यह मंदिर आस्था, सामुदायिक एकता और विश्वास का प्रतीक है।
इस मंदिर का महत्व और प्रसिद्धि का कारण
नैना देवी मंदिर कई कारणों से महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध है:
यह 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहाँ मां सती के नेत्र गिरे थे। यह पौराणिक महत्ता इसे देश भर के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बनाती है।
यह मंदिर मां नैना देवी को समर्पित है, जो सर्वज्ञ शक्ति और ममतामयी देवी के रूप में पूजित हैं।
नैनीताल का नाम भी इसी मंदिर से जुड़ा है—"नैना" (नेत्र) और "ताल" (झील)।
नवरात्रि और नंदाष्टमी जैसे उत्सवों के समय यहाँ हजारों श्रद्धालु एकत्र होते हैं।
झील के किनारे स्थित यह मंदिर, प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ आध्यात्मिक वातावरण का भी केंद्र है।
श्रद्धालु इस मंदिर में आशीर्वाद, सुरक्षा, और आध्यात्मिक शांति के लिए आते हैं।
इस मंदिर के रोचक तथ्य
नैना देवी मंदिर से जुड़ी कई रोचक बातें इसे और भी विशेष बनाती हैं:
मंदिर के गर्भगृह में देवी की आंखें (नयन) प्रतिष्ठित हैं, जो सर्वदर्शी शक्ति का प्रतीक हैं।
नैनीताल नगर का नाम भी इस मंदिर से ही प्रेरित है।
1880 के भूस्खलन में मंदिर नष्ट हो गया था, जिसे स्थानीय श्रद्धालुओं ने पुनः निर्मित किया।
श्रद्धालु नैनी झील में स्नान कर मंदिर में पूजा करने आते हैं।
नंदा अष्टमी महोत्सव इस मंदिर का प्रमुख वार्षिक आयोजन है।
मंदिर में एक अखंड ज्योति निरंतर जलती रहती है, जो मां नैना देवी की अखंड उपस्थिति का प्रतीक है।
महत्वपूर्ण तिथियाँ और त्योहार
नैना देवी मंदिर में वर्ष भर अनेक त्योहार बड़े उत्साह और श्रद्धा से मनाए जाते हैं:
नवरात्रि (चैत्र और शरद)
मार्च–अप्रैल और सितंबर–अक्टूबर में मनाई जाती है।
मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा।
विशेष पूजा, आरती, और सांस्कृतिक कार्यक्रम।
नंदा अष्टमी (नंदा देवी महोत्सव)
अगस्त–सितंबर में।
मां नंदा और सुंदा देवी की पूजा।
आठ दिवसीय उत्सव और नैनी झील में मूर्ति विसर्जन।
दुर्गा अष्टमी / महानवमी
शरद नवरात्रि के दौरान।
कन्या पूजन और यज्ञ।
मकर संक्रांति
14 जनवरी को।
नैनी झील में स्नान और विशेष पूजा।
दीपावली
अक्टूबर–नवंबर में।
दीयों और पुष्पों से मंदिर सजाया जाता है।
गुरु पूर्णिमा और शरद पूर्णिमा
जुलाई और अक्टूबर में।
भजन-कीर्तन और चंद्रमा की रोशनी में पूजा।
साल भर में सोमवार और शुक्रवार को विशेष शुभ दिन माना जाता है।
मंदिर के पास घूमने योग्य स्थान
नैना देवी मंदिर के आसपास कई दर्शनीय स्थल हैं:
नैनी झील : नौकायन और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद।
मॉल रोड : खरीदारी और स्थानीय व्यंजनों का आनंद।
स्नो व्यू पॉइंट : रोपवे द्वारा हिमालय के दृश्य।
टिफिन टॉप (डोरोथी सीट) : नैनीताल नगर के सुंदर दृश्य।
इको केव गार्डन : प्राकृतिक गुफाएँ और संगीत फव्वारे।
तिब्बती बाजार : ऊनी वस्त्र और हस्तशिल्प।
हनुमान गढ़ी : सुंदर सूर्यास्त दृश्य और आध्यात्मिक शांति।
गर्नी हाउस : जिम कॉर्बेट का ऐतिहासिक निवास।
नैनीताल चिड़ियाघर : हिमालयी प्रजातियों का दुर्लभ संग्रह।
मंदिर कैसे पहुँचें
नैना देवी मंदिर तक पहुँचने के कई साधन हैं:
सड़क मार्ग से :
दिल्ली (310 किमी), काठगोदाम (35 किमी), हल्द्वानी (40 किमी) से अच्छी सड़क सुविधा।
नियमित बसें और टैक्सी उपलब्ध।
रेल मार्ग से :
नजदीकी रेलवे स्टेशन: काठगोदाम (35 किमी)।
दिल्ली, लखनऊ, कोलकाता से जुड़ा।
टैक्सी द्वारा लगभग 1.5 घंटे में नैनीताल पहुँच सकते हैं।
हवाई मार्ग से :
नजदीकी हवाई अड्डा: पंतनगर (55 किमी)।
दिल्ली, देहरादून से उड़ानें।
स्थानीय परिवहन :
मल्लीताल क्षेत्र में स्थित मंदिर तक पैदल, रिक्शा या ई-रिक्शा से आसानी से पहुँचा जा सकता है।
मॉल रोड पर पार्किंग प्रतिबंधित है।
घूमने का सर्वोत्तम समय
नैना देवी मंदिर घूमने का सर्वोत्तम समय मार्च से जून और सितंबर से नवंबर है:
वसंत और ग्रीष्म (मार्च–जून): प्रकृति के सौंदर्य के बीच मंदिर दर्शन।
शरद ऋतु (सितंबर–नवंबर): नवरात्रि और त्योहारों के समय।
सर्दी (दिसंबर–फरवरी): बर्फबारी के बीच शांत वातावरण में पूजा।
नवरात्रि और नंदा अष्टमी के समय मंदिर का वातावरण अत्यंत भव्य और आध्यात्मिक होता है।
निष्कर्ष
नैना देवी मंदिर की यात्रा केवल एक तीर्थयात्रा नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक जागृति का अवसर है। यहां की मां नैना देवी की दिव्य उपस्थिति, नैनी झील की शांत ऊर्जा, और नैनीताल का प्राकृतिक सौंदर्य, श्रद्धालुओं के हृदय को गहराई से छू जाता है।
यदि आप शांति, आशीर्वाद, और मां के प्रेममय दर्शन की तलाश में हैं, तो नैना देवी मंदिर आपका स्वागत करता है। मां की कृपा से आपकी यात्रा सफल, आनंदमयी और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध हो।