हाट कालीका मंदिर – कुमाऊं की गोद में स ्थित एक शक्तिशाली शक्तिपीठ
Haat Kalika Temple – A Sacred Shakti Peeth in the Heart of Kumaon

परिचय
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित शांत और सुरम्य नगर गंगोलीहाट में विराजमान है एक अत्यंत पवित्र मंदिर — हाट कालीका मंदिर, जिसे देवी काली के प्रचंड रूप को समर्पित किया गया है। यह मंदिर केवल एक शक्तिपीठ नहीं, बल्कि भक्ति, शक्ति, और शौर्य का संगम है। माँ काली के इस प्राचीन धाम को केवल साधारण भक्त ही नहीं, बल्कि भारतीय सेना की कुमाऊँ रेजिमेंट भी अपनी कुलदेवी मानती है। हर वर्ष हजारों भक्त इस मंदिर में माँ का आशीर्वाद लेने आते हैं और इस स्थान की दिव्यता को अनुभव करते हैं।
मंदिर का स्थान
हाट कालीका मंदिर, उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में स्थित गंगोलीहाट नगर में है, जो समुद्रतल से लगभग 1800 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह स्थान प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक ऊर्जा का अद्वितीय संगम है।
यह गंगोलीहाट नगर, पिथौरागढ़ से लगभग 77 किमी, अल्मोड़ा से 90 किमी और हल्द्वानी से 180 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ तक सड़क मार्ग से आसानी से पहुँचा जा सकता है।
ऐतिहासिक और धार्मिक पृष्ठभूमि
हाट कालीका मंदिर की स्थापना का श्रेय आदि शंकराचार्य को दिया जाता है। आठवीं-नौवीं शताब्दी में हिमालय यात्रा के दौरान उन्होंने इस स्थान की दिव्य ऊर्जा को पहचानकर यहाँ माँ काली की मूर्ति की स्थापना की थी।
इस क्षेत्र में पहले से ही शक्ति साधना और तांत्रिक परंपरा का प्रभाव रहा है। गंगोलीहाट को प्राचीन काल में तांत्रिक साधकों का केंद्र माना जाता था। कत्युरी और चंद वंशों के समय में इस मंदिर को शाही संरक्षण प्राप्त हुआ। इसके बाद यह स्थान एक प्रमुख शक्ति उपासना स्थल बन गया।
मंदिर का महत्व और प्रसिद्धि का कारण
हाट कालीका मंदिर को एक शक्तिशाली शक्तिपीठ माना जाता है, जहाँ माँ काली के प्रचंड और रक्षक रूप की पूजा होती है। यह मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध है क्योंकि यह भारतीय सेना की कुमाऊँ रेजिमेंट की कुलदेवी का धाम है।
सेना के जवान यहाँ युद्ध पर जाने से पहले माँ से आशीर्वाद लेते हैं और लौटने के बाद कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि शौर्य और श्रद्धा का प्रतीक बन गया है।
इसके अतिरिक्त यह मंदिर तांत्रिक साधकों के लिए भी महत्वपूर्ण है जो यहाँ साधना करने आते हैं। कुमाऊँ क्षेत्र के लोगों के जीवन में यह मंदिर संस्कृति और विश्वास का केंद्र है।
इस मंदिर से जुड़ी रोचक जानकारियाँ
मंदिर की स्थापना स्वयं आदि शंकराचार्य ने की थी।
यह मंदिर कुमाऊँ रेजिमेंट की कुलदेवी को समर्पित है।
यहाँ की मुख्य मूर्ति एक यंत्र रूप में भी प्रतिष्ठित है, जो तांत्रिक परंपरा से जुड़ा है।
नवरात्रि के दौरान हजारों भक्त यहाँ एकत्र होते हैं, और रातभर जागरण एवं यज्ञ का आयोजन होता है।
भक्तों की मन्नत पूर्ण होने पर यहाँ घंटी बांधने की परंपरा है, जिससे सैकड़ों घंटियाँ मंदिर परिसर में लटकी हुई देखी जा सकती हैं।
मंदिर का वातावरण अत्यंत शांत, दिव्य और ध्यान हेतु अनुकूल है।
प्रमुख पर्व और तिथियाँ
चैत्र नवरात्रि (मार्च–अप्रैल) : इस दौरान नौ दिन तक विशेष पूजन, दुर्गा सप्तशती पाठ और जागरण होता है।
शारदीय नवरात्रि (सितंबर–अक्टूबर) : यह समय तांत्रिक साधना के लिए भी विशेष रूप से पवित्र माना जाता है।
विजयदशमी/दशहरा : दसवें दिन माँ की विजय आरती होती है और भक्त मन्नत के धागे व घंटियाँ चढ़ाते हैं।
दीपावली (अक्टूबर–नवंबर) : मंदिर दीपों से जगमगाता है और विशेष लक्ष्मी-काली पूजा होती है।
गुरु पूर्णिमा (जून–जुलाई) : इस दिन आदि शंकराचार्य और गुरु परंपरा को समर्पित पूजन और ध्यान कार्यक्रम होते हैं।
हाट कालीका मेला : नवरात्रि या फसल कटाई के समय आयोजित यह मेला सांस्कृतिक और धार्मिक दोनों रूपों में महत्वपूर्ण है।
मंदिर के निकट घूमने योग्य स्थान
पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर (14 किमी) : 33 करोड़ देवी-देवताओं की प्रतीकात्मक आकृतियों वाली यह गुफा रहस्यमयी और आध्यात्मिक है।
वैष्णवी मंदिर (2–3 किमी) : शांत वातावरण और ध्यान के लिए उपयुक्त यह मंदिर पास ही स्थित है।
लमकेश्वर महादेव मंदिर (10 किमी) : घने जंगलों में स्थित यह शिव मंदिर आध्यात्मिक साधना के लिए आदर्श स्थान है।
बेरिनाग (30 किमी) : यहाँ से हिमालय की चोटियाँ, चाय बागान और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लिया जा सकता है।
मोस्तामनू मंदिर, पिथौरागढ़ (50 किमी) : यह स्थानीय आस्था का केंद्र है और हर वर्ष मेला भी लगता है।
अस्कोट मस्क डियर अभयारण्य (70 किमी) : कस्तूरी मृग और अन्य हिमालयी जीवों का संरक्षण केंद्र।
पिथौरागढ़ नगर (77 किमी) : पिथौरागढ़ किला, कपिलेश्वर गुफा, और सोर घाटी जैसे दर्शनीय स्थल यहाँ देखे जा सकते हैं।
मंदिर तक कैसे पहुँचे
सड़क मार्ग से : गंगोलीहाट उत्तराखंड के प्रमुख नगरों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। आप पिथौरागढ़, अल्मोड़ा या हल्द्वानी से बस या टैक्सी द्वारा पहुँच सकते हैं।
रेल मार्ग से : निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम (200 किमी) है। यहाँ से टैक्सी या बस द्वारा गंगोलीहाट पहुँचा जा सकता है।
हवाई मार्ग से : निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर एयरपोर्ट (225 किमी) है। यहाँ से हल्द्वानी, अल्मोड़ा होते हुए गंगोलीहाट पहुँचा जा सकता है।
गंगोलीहाट पहुँचने के बाद, हाट कालीका मंदिर मात्र 1 किमी की दूरी पर है, जहाँ वाहन से या पैदल पहुँचा जा सकता है।
मंदिर आने का सर्वोत्तम समय
मार्च से जून और सितंबर से नवंबर के बीच का समय मंदिर दर्शन के लिए सर्वोत्तम है।
वसंत और ग्रीष्म ऋतु (मार्च–जून) : सुहावना मौसम, स्पष्ट आसमान, यात्रा के लिए अनुकूल।
शरद ऋतु (सितंबर–नवंबर) : नवरात्रि उत्सव और शुद्ध वातावरण के कारण आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर।
शीतकाल (दिसंबर–फरवरी) : यात्रा संभव, परंतु अत्यधिक ठंड के लिए तैयार रहें।
वर्षा ऋतु (जुलाई–अगस्त) : भूस्खलन और सड़क बाधा के कारण यात्रा की अनुशंसा नहीं की जाती।
समापन
हाट कालीका मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आध्यात्मिक शक्ति, साहस और भक्ति का प्रतीक है। आदि शंकराचार्य की उपस्थिति से पवित्र और कुमाऊँ रेजिमेंट की श्रद्धा से गौरवान्वित यह मंदिर हर उस भक्त को अपनी ओर बुलाता है जो माँ की कृपा और सुरक्षा चाहता है।
यदि आप शांति, साधना और शक्ति का अनुभव करना चाहते हैं, तो माँ हाट कालीका के चरणों में पहुँचिए। यहाँ की दिव्यता आपको न केवल आध्यात्मिक रूप से जागृत करेगी, बल्कि जीवन को नई दृष्टि और ऊर्जा भी प्रदान करेगी।