त्रियुगीनारायण मंदिर: भगवान शिव और माता पार्वती के दिव्य विवाह का पावन स्थल
Triyuginarayan Temple: The Eternal Wedding Venue of Lord Shiva and Goddess Parvati in Uttarakhand

भूमिका
त्रियुगीनारायण मंदिर उत्तराखंड के सबसे पवित्र और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। यह प्राचीन मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है, लेकिन इसकी प्रसिद्धि का मुख्य कारण यह है कि यहीं भगवान शिव और माता पार्वती का दैवीय विवाह संपन्न हुआ था।
गंभीर हिमालयी पर्वतों, घने जंगलों और हरी-भरी घाटियों से घिरा यह मंदिर एक विशेष शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता है। हर वर्ष हजारों श्रद्धालु और तीर्थयात्री इस पवित्र स्थल पर दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करने आते हैं। यह मंदिर आमतौर पर केदारनाथ यात्रा के साथ भी जोड़ा जाता है और उत्तराखंड की धार्मिक यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
यह मंदिर केवल एक तीर्थ स्थल नहीं, बल्कि प्रेम, विवाह और आध्यात्मिक एकता का प्रतीक है।
मंदिर का स्थान
त्रियुगीनारायण मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के त्रियुगीनारायण गांव में स्थित है। यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 1,980 मीटर (6,500 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है।
यह मंदिर केदारनाथ से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और तीर्थयात्रियों द्वारा चारधाम यात्रा में शामिल किया जाता है। हिमालयी दृश्यों और धार्मिक महत्व के कारण यह स्थान श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत पावन है।
ऐतिहासिक और धार्मिक पृष्ठभूमि
त्रियुगीनारायण मंदिर का उल्लेख हिंदू धर्म के पुराणों में मिलता है, विशेषकर स्कंद पुराण और शिव पुराण में। मान्यता है कि यह वही स्थान है जहाँ माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह संपन्न हुआ था।
माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए गौरीकुंड में कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। यह विवाह त्रियुगीनारायण में सम्पन्न हुआ, जहाँ भगवान विष्णु ने माता पार्वती के भाई की भूमिका निभाई और भगवान ब्रह्मा ने मुख्य पुरोहित के रूप में विवाह सम्पन्न कराया।
मंदिर का नाम इस घटना से ही जुड़ा है:
त्रियुगी – तीन युग: सत्य, त्रेता, और द्वापर
नारायण – भगवान विष्णु
मंदिर प्रांगण में स्थित अखंड धूनी (अनंत अग्नि) उस पवित्र विवाह की साक्षी मानी जाती है और तीन युगों से निरंतर जल रही है।
मंदिर का महत्व और प्रसिद्धि का कारण
त्रियुगीनारायण मंदिर का सबसे बड़ा धार्मिक महत्व यह है कि यह शिव-पार्वती के दैवीय विवाह का स्थल है। यहाँ आकर श्रद्धालु न केवल भगवान शिव और माता पार्वती के पावन प्रेम की अनुभूति करते हैं, बल्कि अपने वैवाहिक जीवन में भी शांति, प्रेम और समरसता की कामना करते हैं।
यह मंदिर वैष्णव और शैव संप्रदायों के बीच की एकता का प्रतीक है। भगवान विष्णु को समर्पित होने के बावजूद, इसका महत्व शैव भक्तों के लिए भी अत्यंत गहरा है।
आज यह मंदिर एक लोकप्रिय विवाह स्थल बन चुका है, जहाँ हिंदू जोड़े अपने विवाह संस्कार कराते हैं ताकि उन्हें शिव-पार्वती जैसी दिव्य संगति का आशीर्वाद मिले।
मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य
अखंड धूनी: मंदिर परिसर में एक शाश्वत अग्नि जलती रहती है, जो शिव-पार्वती विवाह के समय से प्रज्ज्वलित है।
तीन युगों की अग्नि: मंदिर का नाम "त्रियुगीनारायण" इस बात को दर्शाता है कि यह पावन अग्नि सत्य, त्रेता, और द्वापर युगों से जल रही है।
गौरीकुंड से जुड़ाव: माता पार्वती ने अपने विवाह के लिए यह स्थान स्वयं चुना था।
चार पवित्र कुंड: मंदिर के पास चार कुंड हैं —
रुद्र कुंड (स्नान),
विष्णु कुंड (पीने हेतु),
ब्रह्मा कुंड (विधि के लिए) और
सरस्वती कुंड (पवित्र जल)
विवाह के लिए आदर्श स्थान: यहाँ विवाह करने से युगों तक स्थायी वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है।
हिमालय की गोद में स्थित: मंदिर का शांत वातावरण ध्यान, साधना और आत्मिक अनुभूति के लिए अनुकूल है।
कम प्रचारित लेकिन आध्यात्मिक रूप से समृद्ध: यह स्थान भीड़भाड़ से दूर, आस्था और शांति का केन्द्र है।
प्रमुख पर्व और तिथियाँ
महाशिवरात्रि (फरवरी–मार्च): शिव-पार्वती विवाह की स्मृति में विशेष पूजा, हवन और दीपदान किया जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा (अक्टूबर–नवंबर): पवित्र स्नान, दान और विशेष अनुष्ठान का आयोजन होता है।
विवाह पंचमी (नवंबर–दिसंबर): इस दिन शिव-पार्वती और राम-सीता विवाह की स्मृति में श्रद्धालु विवाह या पुनःविवाह करते हैं।
श्रावण मास (जुलाई–अगस्त): शिव को समर्पित मास में विशेष पूजन और रुद्राभिषेक होता है।
नवरात्रि (चैत्र और शारदीय): देवी पूजा, व्रत और शक्ति साधना की जाती है।
स्थानीय मेले और उत्सव: गर्मियों में सांस्कृतिक आयोजन और मेले लगते हैं।
नित्य पूजन और मासिक पूर्णिमा अनुष्ठान: मंदिर में नियमित रूप से विष्णु और शिव की पूजा होती है।
मंदिर के निकट दर्शनीय स्थल
केदारनाथ मंदिर – 25 किमी: द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक।
गौरीकुंड – 18 किमी: पार्वती जी की तपस्थली।
सोनप्रयाग – 13 किमी: मंदाकिनी और वासुकी नदियों का संगम।
गुप्तकाशी – 30 किमी: प्राचीन विश्वनाथ मंदिर और पांडवों की कथा से जुड़ा।
चोपता – 80 किमी: तुंगनाथ ट्रेक का आधार स्थल।
तुंगनाथ मंदिर – 3.5 किमी ट्रेक: विश्व का सबसे ऊँचा शिव मंदिर।
देवरिया ताल – 85 किमी: शांत और सुंदर झील।
कालिमठ मंदिर – 40 किमी: 108 शक्ति पीठों में एक।
उखीमठ – 35 किमी: केदारनाथ की शीतकालीन गद्दी।
अगस्त्यमुनि – 70 किमी: अगस्त्य ऋषि को समर्पित स्थान।
मंदिर तक कैसे पहुँचें
वायु मार्ग से: निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट एयरपोर्ट, देहरादून (लगभग 250 किमी) है।
रेल मार्ग से: निकटतम स्टेशन ऋषिकेश (215 किमी) और हरिद्वार (240 किमी) हैं।
सड़क मार्ग से: दिल्ली → हरिद्वार → ऋषिकेश → रुद्रप्रयाग → गुप्तकाशी → सोनप्रयाग → त्रियुगीनारायण। निजी टैक्सी और साझा वाहन ऋषिकेश और हरिद्वार से उपलब्ध हैं।
ट्रेक मार्ग: सोनप्रयाग या गुट्टूर गाँव से लगभग 5 किमी का ट्रेक। रास्ते में जंगल और गाँव के सुंदर दृश्य मिलते हैं।
यात्रा सुझाव: चारधाम यात्रा के समय (मई-जून, सितम्बर-अक्टूबर) में बुकिंग पूर्व में कर लें। सर्दियों में (दिसम्बर-फरवरी) भारी बर्फबारी के कारण मार्ग अवरुद्ध हो सकता है।
यात्रा का सर्वोत्तम समय
गर्मी (अप्रैल–जून): सुहावना मौसम, खुले रास्ते, सुंदर दृश्य।
वर्षा ऋतु (जुलाई–सितम्बर): भूस्खलन की आशंका, यात्रा टालें।
शरद ऋतु (सितम्बर मध्य–नवंबर): साफ़ मौसम, आध्यात्मिक शांति, कम भीड़।
सर्दी (दिसंबर–मार्च): बर्फ से ढका क्षेत्र, साहसी यात्रियों के लिए उपयुक्त।
अनुशंसित समय: मध्य अप्रैल से मध्य जून और मध्य सितम्बर से नवंबर प्रारंभ तक यात्रा सबसे श्रेष्ठ रहती है।
निष्कर्ष
त्रियुगीनारायण मंदिर वह स्थान है जहाँ भगवान शिव और माता पार्वती का दैवीय विवाह संपन्न हुआ था। यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि प्रेम, एकता और आत्मिक जागृति का प्रतीक है।
जो भी भक्त इस मंदिर में दर्शन करते हैं, उन्हें दिव्य प्रेम, वैवाहिक सुख और आध्यात्मिक उन्नति का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
आइए, त्रियुगीनारायण के इस पावन स्थल की यात्रा करें और भगवान विष्णु, भगवान शिव और माता पार्वती की अखंड कृपा प्राप्त करें।