पाताल भुवनेश्वर मंदिर – हिमालय क ी गोद में स्थित रहस्यमयी दिव्य गुफा
Patal Bhuvaneshwar Temple – The Mysterious Abode of Divine Energies in the Himalayas

परिचय
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के शांत और अलौकिक वातावरण में स्थित है पाताल भुवनेश्वर मंदिर — एक ऐसी दिव्य गुफा जो न केवल हिंदू आस्था का प्रतीक है, बल्कि ब्रह्मांडीय रहस्यों का भी साक्षी है। यह मंदिर भूमिगत गुफा के रूप में स्थित है, जहाँ 33 करोड़ देवी-देवताओं की उपस्थिति मानी जाती है।
इस प्राचीन गुफा में प्रवेश करना आत्मा की आंतरिक यात्रा के समान है — एक ऐसा अनुभव जो आत्मचिंतन, मोक्ष और दिव्य अनुभूति के द्वार खोलता है। पाताल भुवनेश्वर का यह रहस्यमयी स्थल श्रद्धालुओं, साधकों और पर्यटकों के लिए एक अद्वितीय तीर्थ बन चुका है।
आइए इस पावन स्थल के बारे में विस्तार से जानें।
मंदिर का स्थान
पाताल भुवनेश्वर मंदिर उत्तराखंड राज्य के पूर्वी कुमाऊं क्षेत्र में स्थित पिथौरागढ़ जिले के भुवनेश्वर गांव के समीप स्थित है।
यह मंदिर लगभग 1,350 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और इसके चारों ओर घने ओक और चीड़ के जंगल हैं, जो इसके आध्यात्मिक वातावरण को और अधिक गहरा बनाते हैं।
ऐतिहासिक और धार्मिक पृष्ठभूमि
पाताल भुवनेश्वर गुफा का उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है। पौराणिक कथा के अनुसार, सूर्य वंश के राजा ऋतुपर्ण को शेषनाग ने इस दिव्य गुफा के रहस्यों से अवगत कराया था।
कहा जाता है कि त्रेता युग में राजा ऋतुपर्ण ने इस गुफा में प्रवेश कर अनंत दिव्य रूपों का दर्शन किया। महाभारत काल में पांडवों ने भी अपने अंतिम तीर्थ यात्रा के दौरान इस गुफा के दर्शन किए थे।
8वीं शताब्दी ई. में आदि शंकराचार्य ने इस गुफा को पुनः खोजा और इसे तीर्थ स्थल के रूप में प्रतिष्ठित किया। तभी से भंडारी परिवार के पुजारी इस पवित्र स्थल के पारंपरिक संरक्षक बने हुए हैं।
इस मंदिर का महत्व और प्रसिद्धि का कारण
पाताल भुवनेश्वर मंदिर धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
यह माना जाता है कि गुफा में 33 करोड़ देवी-देवताओं की अदृश्य उपस्थिति है।
गुफा के भीतर प्राकृतिक चूना पत्थर की संरचनाएँ विभिन्न देवी-देवताओं के प्रतीक मानी जाती हैं।
प्रमुख रूप से भगवान शिव यहां भुवनेश्वर रूप में विराजमान हैं।
यहाँ के प्रमुख चिह्न:
शेषनाग – जो पृथ्वी को धारण करते हैं।
अमरनाथ शिवलिंग – जिस पर प्राकृतिक रूप से जल टपकता रहता है।
काल भैरव की जीभ – जो गुफा के द्वार की रक्षा करती है।
कामधेनु गाय – जो इच्छापूर्ति का प्रतीक है।
चार युगों का प्रतीक चार पत्थरों के घड़े।
यहाँ आकर दर्शन करना चार धाम यात्रा के बराबर पुण्यदायी माना जाता है। गुफा में उतरना आत्मा की अंतर्यात्रा का प्रतीक है, जो मोक्ष की ओर अग्रसर करती है।
इस मंदिर के रोचक तथ्य
पाताल भुवनेश्वर मंदिर के अनेक ऐसे रहस्य और विशेषताएँ हैं जो इसे अद्वितीय बनाते हैं:
यह गुफा जीवित है — यहाँ की प्राकृतिक संरचनाएँ समय के साथ बदलती रहती हैं।
स्कंद पुराण में इस गुफा का उल्लेख मिलता है।
आदि शंकराचार्य ने इसे पुनः खोजा और प्रतिष्ठित किया।
गुफा के अंदर फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी सख्त वर्जित है।
गुफा में अनिवार्य रूप से गाइड के साथ ही प्रवेश किया जाता है। भंडारी परिवार के पुजारी श्रद्धालुओं को गुफा की महिमा समझाते हैं।
गुफा में केवल एक ही प्रवेश और निकास द्वार है, जो जीवन और मृत्यु के एकत्व का प्रतीक है।
प्रमुख स्थल: काल भैरव की जीभ, सीता की रसोई, चार युगों के घड़े आदि।
यह गुफा स्वयं में सनातन धर्म के गूढ़ रहस्यों को समेटे हुए है।
प्रमुख त्योहार और तिथियाँ
पाताल भुवनेश्वर मंदिर में कई प्रमुख हिंदू त्योहार श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाए जाते हैं:
महाशिवरात्रि (फरवरी–मार्च) : भगवान शिव का यह पर्व यहाँ विशेष उत्साह से मनाया जाता है। पूरी रात रुद्राभिषेक और ओं नमः शिवाय के जाप होते हैं।
श्रावण मास (जुलाई–अगस्त) : भगवान शिव को समर्पित यह महीना अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दौरान श्रद्धालु गंगाजल, पुष्प आदि अर्पित करते हैं।
नवरात्रि (चैत्र और शारदीय नवरात्रि) : गुफा में स्थित शक्ति स्वरूपों की विशेष पूजा होती है।
कार्तिक पूर्णिमा (अक्टूबर–नवंबर) : इस दिन विशेष पिंडदान और पूजा का आयोजन होता है।
अमावस्या (हर माह की अमावस्या) : पूर्वजों की शांति के लिए श्रद्धालु यहाँ अमावस्या को विशेष पूजन करते हैं।
दीपावली (अक्टूबर–नवंबर) : दीपावली के दौरान श्रद्धालु गुफा के प्रवेश द्वार पर दीप जलाकर अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का प्रतीक रूप में पूजन करते हैं।
मंदिर के निकट दर्शनीय स्थल
पाताल भुवनेश्वर मंदिर के आसपास कई दर्शनीय एवं धार्मिक स्थल हैं:
गंगोलीहाट : 13 किमी दूर स्थित हाट कालिका मंदिर प्रसिद्ध शक्ति पीठ है।
बेरिनाग : 36 किमी दूर स्थित यह स्थल अपनी चाय बागानों और हिमालय के अद्भुत दृश्य के लिए प्रसिद्ध है।
कोटगड़ी देवी मंदिर : लगभग 25 किमी दूर स्थित यह मंदिर स्थानीय कुलदेवी का मंदिर है।
मुंसियारी : 125 किमी दूर स्थित यह स्थल हिमालय की चोटियों का आधार स्थल है।
पिथौरागढ़ नगर : 91 किमी दूर स्थित यह नगर पिथौरागढ़ किला और सोर घाटी के लिए प्रसिद्ध है।
अस्कोट वन्यजीव अभयारण्य : 80 किमी दूर स्थित यह अभयारण्य हिमालयी वन्यजीवों का घर है।
अन्य स्थल: चौकोरी, लोहाघाट, धारचूला आदि।
मंदिर तक कैसे पहुँचें
पाताल भुवनेश्वर मंदिर पहुँचने के लिए सड़क, रेल और वायु मार्ग उपलब्ध हैं:
सड़क मार्ग :
दिल्ली से (~460 किमी): दिल्ली → हल्द्वानी → अल्मोड़ा → बेरिनाग → गंगोलीहाट → पाताल भुवनेश्वर
अल्मोड़ा से: ~130 किमी
पिथौरागढ़ से: ~91 किमी
रेल मार्ग :
नजदीकी स्टेशन: काठगोदाम (~180 किमी), टनकपुर (~154 किमी)।
स्टेशन से टैक्सी और बस सेवाएँ उपलब्ध हैं।
वायु मार्ग :
निकटतम हवाई अड्डा: पंतनगर हवाई अड्डा (~210 किमी)।
वैकल्पिक: नैनी सैनी हवाई अड्डा, पिथौरागढ़ (~90 किमी)।
गुफा तक पैदल यात्रा : पार्किंग स्थल से एक छोटा मार्ग आपको गुफा के द्वार तक ले जाता है। गुफा में उतरना एक दिव्य अनुभव है जो प्रशिक्षित पुजारियों के मार्गदर्शन में ही होता है।
मंदिर जाने का सर्वोत्तम समय
पाताल भुवनेश्वर मंदिर के दर्शन के लिए सबसे अच्छा समय है:
वसंत और ग्रीष्म ऋतु (मार्च–जून) : मनोहर मौसम और स्वच्छ हिमालयी दृश्य।
शरद ऋतु (सितंबर–नवंबर) : मानसून के बाद का समय, पर्वों का विशेष महत्व।
शीत ऋतु (दिसंबर–फरवरी) : शांतिपूर्ण लेकिन ठंडा मौसम; गुफा खुली रहती है।
मानसून (जुलाई–अगस्त) से बचें, क्योंकि इस समय बारिश के कारण फिसलन और भूस्खलन की संभावना रहती है।
निष्कर्ष
पाताल भुवनेश्वर मंदिर की यात्रा केवल एक तीर्थयात्रा नहीं, बल्कि आत्मा की गहराई में उतरने की एक दिव्य साधना है। गुफा के भीतर प्रवेश करते समय ऐसा अनुभव होता है मानो हम सनातन सत्य के साक्षात्कार हेतु ब्रह्मांड के गर्भ में प्रवेश कर रहे हों।
यह स्थल हर उस साधक को आमंत्रित करता है जो आध्यात्मिक जागृति, शांति और मोक्ष की खोज में है। आइए, भगवान भुवनेश्वर की कृपा से इस पवित्र स्थल की यात्रा करें और अपने भीतर के दिव्यता के द्वार खोलें।